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Showing posts from September, 2017

रंज़िश

रोते थे जिसके लिए हर वो याद बचकानी हुई न आते हो तुम याद ना चेहरे पे शिकन आई बातों की लहर जो खत्म न हो अब लगता है कि काश शुरू न हो कैसी बदली ज़िन्दगी जो प्यार ने दे दी जगह ऊबास को हँ...

क़ीमत

देख के शोहरत उसकी होती है एक ख्वाहिश क्या था मेरा कभी क्या नहीं था ये था वो नहीं। रेत को धर लेंगे मुट्ठी में पर हाथ में रह गए कुछ कंकड़ थे वो रेत या वो कंकड़ या थे वो चूर हुए हीरे। क्या जानने की थी ज़रूरत या पकड़े रखने का कोई मतलब जानना न था ज़रूरी जो भी थे, थे वो मेरे। जब शौक था तज़ुर्बे का तो क्या थी ज़रूरत कसी मुट्ठियों की खोल दिया उन्हीं मुट्ठियों को और भर लिया उस रेत को शीशी में। आज जब देखूँ उस शीशी को याद आते हैं वो बीते पल वही जज़्बा वही बागीपन क्या कोई लगा सकेगा उसकी क़ीमत?

एक आस

कभी आवाज़ ने जवाब दिया तो कभी दिमाग ने सोच के चले थे मोड़ देंगे दुनिया की लहर रास्ता था लंबा पर सोच थी अडिग करना ही क्या था, बस वही। लगा लोग सुन लेंगे शब्दों की गहराई सब चलेंगें एक साथ एक ही डगर कुछ गलत हुआ तो होगी समझ बूझ की आस पर हुआ वो जो कभी सोचा नहीं। सब की थी अपनी कहानी और अपने निष्कर्ष सबको थी चाह सुनाने की, नहीं थी तो सुनने की समझ रुक जाओ धीरज रखो बन गयी मेरी आवाज़ पर धीमी होती मेरी आवाज़ जाती रही। रिश्तों के ऐसे भँवर में ज्यों लगा रो लें ज़रा रोक लिया इक सोच ने सब तो हैं अपने इनसे क्या रूठना कुम्हलाई ऊर्जा भी हँसी और उठ बैठी वहीं।