रंज़िश

रोते थे जिसके लिए
हर वो याद बचकानी हुई
न आते हो तुम याद
ना चेहरे पे शिकन आई

बातों की लहर जो खत्म न हो
अब लगता है कि काश शुरू हो
कैसी बदली ज़िन्दगी जो
प्यार ने दे दी जगह ऊबास को

हँसी से जलती थी दुनिया सारी
अब सामने आने से शर्माती है
धकेल दी जो, चेहरे पे तो आती है
पर अब आँखें, दगा देती हैं

खुद ही आवाज़ चुप सी हुई
खुद से ही उसने बातें की
खुद से ही खुद को मना लिया
पर तुमसे रंज़िश कम न हुई!

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