ज़िंदगी

हाथ बढ़ा ऐ ज़िन्दगी
जो दिए तुझे मौके हज़ार

जो निकले खुद को ढूंढने
तो तबीयत से तराशा

जो निकले खुद को बाँटने
तो हमें ही टुकड़ा-टुकड़ा कर दिया

जो निकले भरोसे का दामन पकड़ने
तो लोगों के शक्ल ही बदल दिए

जो चले दो मीठे बोल बोलने
तो उसकी बाज़ार सजवा दी

महसूस तो करवा पर इतना न
कि सांस से अलग होना चाहूँ

तुझे ढूंढने के लिए ही
हम ने की है मशक्कत

जो यही सिखा दे कि
नाउम्मीद न हो जाऊँ

क्या करूँ ऐ ज़िन्दगी
और किसे दूँ ये मौके हज़ार
__________________________________

16.05.2020

कभी तो ज़िन्दगी की तलब ऐसी लगती है
कि लगता है सामने रखी काग़ज़ पे
उसे परोस कर
बस एक कश लगाऊँ।
एक साँस और ज़िन्दगी जुदा।

_______________________

26.05.2020

सहम सी गईं हैं खुशियाँ
बोलती नहीं आजकल मुझसे
ढाँढस बंधाती हैं मुझे
तू जी बस आज
कभी आराम से कश लगाएँगे|

______________________
04.09.2020

करो ना ज़ाया इन अश्क़ों को हुज़ूर
ग़म-ए-नुमाइश में कहीं अकेले न पड़ जाओ।

Comments

Popular posts from this blog

My life in the box

Was she the luckiest?

Trifecta : Rain that saved her ! - Episode 3