बारिश

वो जो आयीं बारी बारी से बूँदें
साथ लायी वो कल की यादें
जैसे बादलों ने ग़रज़ कर दिल को था सहमा दिया
इस रात की फ़िज़ा ने उस रात के अरमान को जैसे जगा दिया

हम जो हुए मशरूफ़ इन यादों में
हमें पहचाना तो होगा आपने हिचकियों में
बस तिलस्म दिल्लगी की ख़ातिर हम ठहरे रहे
और अरमानों की दास्तां हम सुनते रहे

जो पी ली अब हमने जाम-ए-दिल्लगी
जब कभी होगी मुलाक़ात तुमसे मेरे हुज़ूर
रखकर तुम्हारे होंठों पे उँगली
कर देंगें हम इज़हार-ए-सुरुर।

Comments

Popular posts from this blog

Was she the luckiest?

My life in the box

Trifecta : Rain that saved her ! - Episode 3