शब्द

इस बज़्म-ए-दुनियाँ में सब खिलाड़ी हैं
सब महज़ खेल और लोग खिलाड़ी है
बस जीत ही रह गयी ख़्वाहिश जो सबकी
हार कर जीतने की खुशी का मलाल शायद सिर्फ़ हमें है।


मलमली बातों की फेहरिस्त में जब आया मेरा नाम
थोड़ा शरमाये थोड़ा भरमाये थोड़ा नसीब पे मुस्काए।
ख़ुद को बयाँ करने की ज़रूरत न होगी
क्या डूबती कश्ती को सहारा मिल गया था।
रह न जाये कोई शिक़वा सो कर दिया ख़ुद को बयां
वो आप थे जो इल्लत गिना लाइलाज छोड़ गए मेरे हुज़ूर।


रोक दो मेरी हर ख़्वाहिश को मेरे ज़हन में ऐ खुदा,
जो आँसू बन वो निसार हुए तो उनके कदमों तले रौंदे जाएंगे।


बातों का क्या है बातें तो बहोत होती हैं।
बातें तो वो हैं जो बिन बोल समझ ली जाती हैं।


कभी इक़रार न कर पाए कभी इक़रार कर भी न पाएं।
पर कसम उस ख़ुदा की तुम्हारे इश्क़ पे यकीं न कर पाए।

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