ख़्वाब

18.05.2020

ख़्वाब के टूटने का दर्द ही अजीब होता है
न झेला जाता है ना बयाँ किया जाता है।
बड़े कश्मकश के हालात होते हैं!
असल होते तो उनकी मैय्यत सजाते
पर बेवजूद को दफ़न करें तो कैसे
टीसती है बस तो वो सच्चाई
जो ख़्वाब ने ज़िंदा कर दिए थे।

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न देखो वो ख़्वाब
जो जगने न दे
दूर होंगी रात की तनहाइयाँ
लेकिन आयेगी बेरंगी सुबहा।
जब हक़ीक़त है सूनी
तो सपनों की क्या बिसात
रोकना ही है तो अपनी
उम्मीदों को रोको ।
जब बेहाल हो मन
पर लगे सोच पे पाबंदी
तो वो याद ही क्या जो
ला न पाए अपनी बेबाक़ी।

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