तेरी महफ़िल में

पहली बार शिद्दत से येे बातें रास आईं हैं
मोहब्बत में कहाँ कसमें तिजारत काम आयीं हैं
ग़म-ए-दिल से ज़रा दामन बचा कर हम भी देखेंगे

मोहब्बत बस ज़माने को कहानी दे के जाती है
वरना घुट घुट के जीना आशिकों की ज़िन्दगानी है
किसी दिन ये तमाशा मुस्कुराकर हम भी देखेंगे

इश्क़ की आग में झुलसकर भी किनारा नज़र नहीं आता
दिलों की बात वो समझे ऐसा नज़राना भी न होता
किसी के इश्क़ में दुनियाँ लुटाकर हम भी देखेंगे

_______________________________________
Just hoping I didn't destroy the spirit of one of my favourites - तेरी महफ़िल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे (मुग़ल-ए-आज़म)

Comments

Popular posts from this blog

Was she the luckiest?

My life in the box

Trifecta : Rain that saved her ! - Episode 3